नास्तिकता नर्क का द्वार

नास्तिकता नर्क का द्वार

आज मानव 21वीं सदी में जी रहा है  जिसमें अपनी सभ्यता को त्याग कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण को पूर्ण रूप से अपनाने के लिए अगर्सर दिखाई देता है जिससे नास्तिकता बढ़ती जा रही है नास्तिकता की तरफ बढ़ने के मुख्य दो कारण हैं 
1. विश्व भर के सभी देशों में गलत भक्ति विधि और शास्त्रों से विरोध भक्ति साधना
2. विज्ञान की ओर आंखें बंद कर अग्रसर होना।
इन दोनों कारणों में से सबसे महत्वपूर्ण और चिंताजनक कारण शास्त्रों के विपरीत अंधश्रद्धा के तहत भक्ति करना मुख्य है।
 चलिए हम अब बात करते हैं भारत की-
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भारत मे जनगणना 2011 के अनुसार 99.76% लोग आस्तिक हैं और 0.24%  लोगों ने अपनी धार्मिक पहचान नहीं दी है।
भारत में इतनी बड़ी संख्या में भगवान में आस्था रखने वाले लोग मौजूद हैं लेकिन फिर भी अब वर्तमान में बहुत बड़ी संख्या में लोग नास्तिकता की तरफ बढ़ रहे हैं इसका मुख्य कारण अंध श्रद्धा भक्ति है जिसकी वजह है नकली धर्मगुरुओं , आचार्यों के द्वारा बताई गई शास्त्र विरुद्ध साधना है।
सभी धार्मिक नेता, संत और पुजारी भगवान के बारे में किए गए दावों का समर्थन करने के लिए पर्याप्त सबूत देने में विफल रहे हैं। विज्ञान की उन्नति के कारण, इनमें से कुछ दावे तर्क की कमी से और अधिक प्रश्न उठाते हैं। इसके अलावा संतों और नेताओं द्वारा किए गए दावों में बड़े पैमाने पर अस्पष्टता है जो एक ही धर्मशास्त्रीय पृष्ठभूमि से निकलते हैं, यह हिंदू धर्म, ईसाई धर्म, मुस्लिम आदि हैं जो निस्संदेह किसी व्यक्ति को धार्मिक ग्रंथों के अधिकार पर संदेह करने और अस्तित्व के बारे में सवाल उठाने के लिए प्रेरित करते हैं। पहले के युगों में, सभी को ईश्वर पर भरोसा था। उन्होंने पवित्र शास्त्र के अनुसार भगवान की पूजा की। आध्यात्मिक और साथ ही जीवन के बारे में सामाजिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए बच्चों को गुरुकुलों (स्कूलों) में भेजा गया था। गैर-विश्वासियों ने संतोष किया कि नास्तिकता आस्तिकता की तुलना में एक अधिक प्रशंसनीय स्थिति है और हर कोई देवताओं में विश्वास के बिना पैदा होता है।

धर्मगुरुओं के द्वारा बताई शास्त्र विरुद्ध साधना की कुछ झलक -
पित्र पूजा श्राद्ध कर्म निषेध-
श्रीमद भगवत गीता के अध्याय 9 श्लोक 25 में कहां है के अर्जुन पितरों को पूजने वाले पित्र बनेंगे भूतों को पूछने वाले बहुत बनेंगे फिर भी हमसे पित्र पूजा श्राद्ध पूजा करवाई जाती है जिससे किसी को कोई लाभ प्राप्त नहीं होता और वे अंत में नास्तिक हो जाते हैं।
गरुड़ पुराण में प्रमाण है कि मृतक के भोजन में भोजन खाने वाला अगले जन्म में कुत्ते की योनि में जाता है परंतु फिर भी हमसे मृत्यु भोज आदि शास्त्र के विरुद्ध कर्म करवाया जाता है।

व्रत करने के संदर्भ में - 
घट रामायण में प्रमाण है कि कौन सा  व्रत करने वाला मनुष्य किस-किस योनि में जन्म लेता है।
कबीर साहेब जी ने कहा है - 
व्रत करे से मुक्ति हो तो , अकाल पड़े क्यों मरते हैं ।
तीर्थ जल में कछुए और मछली जीव बहुत से रहते हैं उनकी मुक्ति नहीं होती वह कष्ट बहुत सकते हैं।

एक सही निष्कर्ष नास्तिकता को पूर्ण रूप से समाप्त करने के लिए -
आज वर्तमान समय लगभग 600 वर्ष पूर्व कबीर साहिब जी उस समय में प्रचलित हिंदू एवं मुस्लिम धर्म में प्रचलित शास्त्र विरुद्ध साधना का खंडन करके शास्त्र अनुकूल भक्ति लोगों से करवाई और उस पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर की वास्तविक खेती उनके वास्तविक स्थान सतलोक की जानकारी संपूर्ण मानव समाज को दें जिसका विरोध उस समय मौजूद पंडितों , शंकराचार्य , मौलवियों , काजियों के द्वारा किया गया।

यदि हम आज वर्तमान में समय की बात करें तो एक संत ऐसे हैं जिन पर हमारी नजर और जब उनकी बताई बातों का अध्ययन किया गया तो यह बात पता चली की आज लगभग संपूर्ण विश्व में जितने भी धर्म है उनमें पाखंडवाद चरम सीमा पर है ।
उन सभी धर्मों के धर्म गुरु वेदों, गीताजी , बाइबल , कुरान तथा गुरुग्रंथ साहेब आदि पवित्र धर्मों के पवित्र शास्त्रों की बात करते हैं लेकिन इन पवित्र पुस्तकों के विपरीत ज्ञान बताते हैं जिसकी वजह से मानव जाति नास्तिकता की तरफ़ बढ़ रही है।
आप सभी को जानकर हैरानी होगी कि यह सभी जानकारी हमे खोल कर प्रमाण सहित बताइ है उन संत का विरोध भी संत कबीर साहेब जी की तरह आज वर्तमान में किया जा रहा है उनका नाम है संत रामपाल जी महाराज है।
संत रामपाल जी महाराज ने अपने सत्संग प्रवचन में बताया तथा प्रमाणित किया है कि गीता जी में श्राद्ध कर्म करना , कर्मकांड करवाना व्रत करना तीर्थों पर जाना तथा एक पूर्ण परमात्मा के अलावा अन्य किसी भी देवी देवताओं की भक्ति करना निषेध बताया है जिसकी वजह से साधक को कोई लाभ नहीं होता।
 गीता जी में  कहा है कि शास्त्र विधि को त्याग कर जो मन माना आचरण करते हैं उन्हें ना ही कोई लाभ होता है ना ही उनकी गति होती है ना ही कोई सिद्धि प्राप्त होती है।
वेदों में तथा बाइबल एवं कुरान शरीफ गुरु ग्रंथ साहिब आदि में यह प्रमाणित किया है की पूर्ण परमेश्वर , अल्लाह , रब , भगवान कोई और नही बल्कि कबीर परमेश्वर जी हैं केवल वही पूजनीय है बाकी जितने भी देवी देवता हैं ब्रह्मा जी विष्णु जी शिव जी दुर्गा जी गणेश जी तथा उनके  अधीन आने वाले देवता यह आदरणीय है ना की पूजन है परंतु हमारे धर्म मे इन देवी देवताओं की ही पूजा करनी धर्म गुरुओं ने बताई है जो गलत है ये सभी देवता आदरणीय हैं इनके मूल मन्त्रों का जाप ही इनका आदर सम्मान है जो अंत रामपाल जी महाराज अपने अनुयायियों को देते हैं।
वेदों में प्रमाण है कबीर साहिब भगवान है
आप सभी बुद्धिजीवियों से हमारा निवेदन है कि आप संत रामपाल जी महाराज के सत्संग रोज रात 7:30 बजे साधना टीवी पर अवश्य देखें तथा उनके द्वारा लिखित पुस्तकें ज्ञानगंगा, जीने की राह , अंध श्रद्धाभक्ति खतरा ए जान आदि पढ़ें।
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